भारतीय सिनेमा में नए कलाकारों को लॉन्च करने के उद्देश्य से बनाई गई फिल्में बार-बार खुद को विशिष्ट कहानियों के माध्यम से दर्शकों को दिखाने की कोशिश करती हैं। "आज़ाद" भी कुछ ऐसे ही आदर्श के साथ बनाया गया है। रवीना टंडन की बेटी राशा थडानी और अजय देवगन के स्टूडियो एक्टर को लॉन्च करने वाली इस फिल्म में एक ऐतिहासिक, सामाजिक और गहरी गहराई से भरी कहानी पेश की गई है। लेकिन आजाद न केवल अपनी कहानी बल्कि अपने कलाकारों को भी न्याय नहीं दे लालच।
कहानी का ढांचा और उसकी कमजोरी:
1920 के दशक पर आधारित यह फिल्म एक गरीब किसान गोविंद (अमन भगवान) की कहानी है, जो तानाशाही जमीन और सामाजिक अन्याय के खिलाफ खड़ी होने की कोशिश करती है। उनके जीवन में एक खास बदलाव तब आता है जब वह "आजाद" नाम के घोड़े से जुड़ते हैं। आज़ाद, जो शुरुआत में गद्दार और अमीर था, धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे होने वाली फ़िल्में बनीं और गोविंद के संघर्ष का प्रतीक बनीं।
हालांकि राणा प्रताप और चेतक में ऐतिहासिक संदर्भों को जोड़ने की कोशिश की गई है, लेकिन फिल्म की कहानी में गहराई से भूमिका निभाना बरकरार है। स्क्रिप्टरी हुई है और कलाकारों की यात्रा अनपेक्षित रूप से चलती है। फिल्म में कई गुटों में गुटबाजी की कोशिश की जाती है - वर्ग संघर्ष, सामाजिक अन्याय, विद्रोह, और प्रेम, लेकिन किसी भी एक विषय को अस्थायी तरीके से पेश नहीं किया जा सकता है।
कलाकारों का प्रदर्शन
राशा थडानी और अमन देवगन के लिए यह फिल्म एक बड़े मंच पर लॉन्च हो सकती थी, लेकिन प्रोफेशनल स्क्रिप्ट और डायरेक्टर ने उनके प्रदर्शन को दबा दिया। अमन की स्क्रीन पर ज्यादातर समय है, लेकिन उनका किरदार अनुपयोगी और आंशिक है। राशा, जो फिल्म के पहले भाग में हल्की उपस्थिति दर्ज कराती हैं, दूसरे भाग में लगभग गायब हो जाती हैं।
फिल्म में अजय देवगन (ठाकुर विक्रम सिंह) और डायना पेंटी (केसर) जैसे अनुभवी कलाकार भी हैं, उनकी कहानी को लेकर केवल उपस्थिति ही अलग है। पीयूष मिश्रा (राय बहादुर शत्रु सिंह) जैसे अभिनेता भी अपनी क्षमता का सही उपयोग नहीं कर पाए।
निदेशक और तकनीकी अधिकारी:
अभिषेक कपूर, काई पो चे और रॉक ऑन जैसी बेहतरीन फिल्में दी हैं, इस बार एक बेहतरीन फिल्म लेकर आए हैं। उनका डायरेक्टर इस बार कहीं भी खोया हुआ और बुरा महसूस होता है। कहानी में साम्य की कमी है और ऐतिहासिक संदर्भों का इस्तेमाल सतही लगता है।
फ़्राईज़ का संगीत कुछ राहत प्रदान करता है, विशेष रूप से फिल्म के प्रेम गीत और होली गीत में, लेकिन फ़्राईल कहानी और अनपेक्षित दृश्यों के कारण संगीत का अमित पर सबसे अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है।
फिल्म की बर्बादी:
स्क्रिप्ट की कमी: फिल्म को एक स्पष्ट दिशा की जरूरत थी। घोड़े और गोविंद की कहानी में कोई सितारा प्रगति नहीं होती।
अभिनेताओं का विकास: मुख्य पात्रों को गहराई नहीं दी गई, जिससे दर्शक भागीदारी में असमर्थ रहते हैं।
अतिरिक्त लंबाई: फिल्म 2.5 घंटे लंबी है, लेकिन इस दौरान कहानी को आगे बढ़ाने के बजाय विभिन्न यात्राओं में उलझी रहती है।
विषय का सिद्धांत: वर्ग संघर्ष और सामाजिक अन्याय जैसे गंभीर विषयों को उजागर तरीके से पेश किया गया है।
निष्कर्ष:
"आजाद" एक ऐसी फिल्म है जो उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती। इसकी कहानी के पात्र और रूप हैं, और यह एक ऐतिहासिक-नाटक के रूप में दर्शकों को बांधने में असमर्थ है। फिल्म की सबसे बड़ी फ़्लैट यह है कि इसका शीर्षक "आज़ाद" है, लेकिन यह खुद ही राक्षसों की बेड़ियों में अपनी जमी हुई है।
फिल्म के बजाय, यह कलाकार के लिए बेहतर कहानी और निर्देशन की तलाश का संकेत है। अगर आप शायद एक घोड़े और इंसान की अनोखी कहानी की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म आपको निराश कर देगी
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