राहुल सिंह की सफलता की कहानी,
कहां जाता है कि आदमी के अंदर जुनून और मेहनत करने की लगन हो तो वह कुछ भी कर सकता है। ऐसा ही नाम एक सामने आया है राहुल सिंह का।
बेहद सामान्य परिवार के लड़का राहुल सिंह के पास से कभी आईआईटी की तैयारी के लिए ट्यूशन फीस देने तक के पैसे नहीं थे। नतीजा आर्थिक तंगी की वजह से अपने साथियों की तरह वह ट्यूशन नहीं ले पाए।
आत्मविश्वास से भरे दृढ़ निश्चायी राहुल की राह में अरोड़ा नहीं बन पाई। हिम्मत हारने की वजह उसने दोगुनी उत्साह से स्वयं तैयारी शुरू कर दी और एनआईटी मैं दाखिला लेने मैं कामयाब हुए। यह तो बस शुरुआत थी, आगे उन्होंने तमाम कठिनाइयों को पार करते हुए कामयाबी के कई मुकाम हासिल किए और आज इको सोल होम के नाम से कई देशों में संचालित कंपनी के स्वामी है।
सरकारी स्कूल से पढ़ाई पूरा किया।
राहुल का जन्म छत्तीसगढ़ के इलाही में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। राहुल ने स्थानीय सरकारी स्कूल से पढ़ाई की, जहां बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव था। सन 2001 में 12वीं कक्षा उतार करने के बाद राहुल ने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलजी सूरत से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया। फिर जमशेदपुर के जबल स्कूल आफ मैनेजमेंट से एमबीए किया। उनके माता-पिता चाहते थे कि मेरा लड़का विदेश में अच्छी तनख्वाह पर नौकरी करें। राहुल के माता-पिता की यही इच्छा थी। 2008 में राहुल निवार्क के चले गए। उन्होंने वहां 2019 तक अलग-अलग कंपनियों में काम किय। जब उन्होंने भारत लौटने का फैसला किया तो वह एक बड़ी कंपनी के ग्लोबल हेड थे। अपनी कंपनी खड़ी करने का फैसला राहुलने तब लिया जब वह अमेरिका में नौकरी कर रहे थे।
उन्हें अरविंद गणेशन केबारे में पता चला। जल्द ही दोनों दोस्त बन गए और फिर दोनों ने मिलकर साल 2020 में इकोसॉल होम नामक कंपनी की स्थापना की, शुरुआत में राहुल को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वह कोशिश करते रहे, पूंजी छूटने के लिए काफी हाथ पांव मारे, लेकिन काम नहीं बना, तो अंततः उन्होंने अपना घर बेच दिया। पैरों के पत्तों से पत्तल एवं कटोरी जैसे पर्यावरण अनुकूल उत्पाद बनाने का व्यवसाय शुरू करने के बाद जब वह इस पेज में पहले से लगे कारीगरों से मिलने जाते, तो कोई उन्हें बैठने तक के लिए नहीं कहता था। लोग उनसे पूछते कि आखिर आप हैं कौन और मैं आपके लिए उत्पाद क्यों बनाऊं? हालांकि इस दौरान कुछऐसे लोग, जिन्होंने उनकी बात को समझा।
बेकार चीजों से उत्पाद बनाया।
आमतौर पर ज्यादातर मध्यवर्गीय परिवार का व्यक्ति किसी बड़ी कंपनीमें काम करता है तो अपना व्यवसाय शुरू करने के बारे में नहीं सोचता। लेकिन राहुल के पास यह जोखिम उठाने का साहस था। इसके अलावा उन्हें पर्यावरण से भी लगाव था, इसलिए उन्होंने बेकार की चीजों से पर्यावरण अनुकूल उत्पाद बनाने का फैसला किया। राहुल जब अपने गांव जाते थे तो देखते कि लोग डिस्पोजल उत्पादों का इस्तेमाल तो कर रहे हैं लेकिन उन्हें यह पता नहीं होता की वह किस चीज से बने हैं और उन लोगों के जीवन पर और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है। भारत में पहले भी इस तरह के उत्पाद बना रहे थे लेकिन निर्यात के लिहाज से बिल्कुल भी नहीं बन रहा था। गांव में उन्होंने देखा कि स्थानीय स्तर पर लोग रवि से भी पत्तल कटोरी आदि बना रहे हैं। उन्होंने देखा थी यह तो सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसानदेह है ऐसे में अगर पर्यावरण अनुकूल सामग्रियों से उत्पाद बनाया जाए तो न सिर्फ लोग उन्हें स्वीकार करेंगे बल्कि पर्यावरण का संरक्षण भी होगा।
बेकार चीजों को सोना समझा।
हमारे देश मे अधिकांशत यानी करीब 95 फ़ीसदी बेकार चीजों और कचरो को निष्पादन के नाम पर जला दिया जाता है, जिससे पर्यावरण में और प्रदूषण फैलता है। लेकिन राहुल जानते थे कि इन्हीं कचरा समझे जाने वाली बेकार चीजों को सोने में तब्दील किया जा सकता है। जिन बेकार चीजों का अपने देश में कोई मूल नहीं है। चीन उसे आयात करता है। पर्यावरण संरक्षण और सेहत के प्रति दुनिया भर के लोगों में बढ़ती जागरूकता के कारण पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की तरफ लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। यही वजह है कि आज राहुल का व्यवसाय भारत सहित अमेरिका कनाडा आदि देशों में फैला हुआ है। पूरी दुनिया में इको सोल होम की 150 से ज्यादा विनिर्माण इकाइयां कम कर रही है।
युवाओं के लिए सीख।
1, जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए नए विचार और नवाचार बेहद जरूरी है।
2, आत्मविश्वास के साथ है कोई भी व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता की मंजिल हासिल कर सकता है।
3, दुनिया में कोई भी चीज बेकार नहीं होती है, सही नजरिया अपनाकर कचरे को भी सोना बनाया जा सकता है।
4, अगर पूरी लगन से मेहनत की जाए तो एक न एक दिन सफलता जरूर मिलती है।
5, खुद पर विश्वास और और व्यावसायिक क्षेत्र के बदलते परिदृश्य पर नजर रखकर सफलता पाई जा सकती है।
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