बिहार में जाति जनगणना के आंकड़े जारी, देखें आपकी जाति कितनी फ़ीसदी है।

बिहार के नीतीश सरकार ने तमाम विरोध के बावजूद जाति जनगणना सफलतापूर्वक कर लिया है। जाति जनगणना को रोकने के लिए विरोधी दल हाई कोर्ट में चुनौती दिए थे। इसके बावजूद बाद में हाई कोर्ट ने जाति जनगणना करने की मंजूरी दी। नीतीश सरकार ने जाति जनगणना दो चरणों में कराया था। इस जनगणना के आधार पर आप देख सकते हैं कि कौन सी जाति बिहार में कितनी फ़ीसदी है। जाति जनगणना के अनुसार बिहार में यादव जाति की संख्या सबसे ज्यादा है। राज्य में अत्यंत पिछड़ा वर्ग लगभग 36 फ़ीसदी है तथा पिछड़ा वर्ग लगभग 27 फ़ीसदी है। कुल मिलाकर पिछड़ा वर्ग 63 फ़ीसदी है।
पिछली जातियों को आरक्षण के लिए फिर छीरेगा बहस।
एसएससी जातियों को आरक्षण के लिए 1990 में लागू मंडल आयोग की सिफारिश की 33 साल बाद ही जाती राजनीति का नया अध्याय शुरू हो गया है। मध्य प्रदेश राजस्थान समेत कुछ राज्यों के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले आए आंकड़े ओबीसी आरक्षण को लेकर नए सिरे से बहस छेड़ दी है।
जाति जनगणना के मांग क्यों हो रही थी।
इसमें आखिरी बार 1931 को जाती जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे। 1941में गणना हुई तो लेकिन आंकड़े सार्वजनिक  नहीं किए गए। अभी तक जो भी सरकार योजना चला रही है वे 1931 में  गणना के आधार पर है। ऐसे में यदि जिसके भी बिहार की कर्ज पर आते हैं तो अब जातीय गणना की वकालत करने वालों के मुताबिक सरकार योजनाओं का लाभ पहुंचेगा जिने ज्यादा जरूरत है।
जाति गणना के बारे में नितीश कुमार का क्या खाना है।
नितीश कुमार कल सदन में बैठक करेंगे क्या कदम उठाएंगे इस पर अभी कुछ नहीं बोलेंगे।
इस  आंकड़े के बारे में नरेंद्र मोदी ने क्या कहा।
यह लोग 60 साल पहले भी वह जात पात के नाम पर देश को लूट रहे थे।आज भी वही कर रहे हैं।
राहुल गांधी ने क्या था।
राहुल गांधी ने कहा बिहार में अभी एसएससी, एसटी 84  फीसदी है। देश में गणना हो जितनी आबादी उतना हक।


जातियों के आधार पर संख्या
कुर्मी : 2.87 प्रतिशत
कुशवाहा : 4.27 प्रतिशत
ब्राह्मण : 3.67 प्रतिशत
धानुक : 2.13 प्रतिशत
भूमिहार : 2.89 प्रतिशत
राजपूत : 3.45 प्रतिशत
सुनार : 0.68 प्रतिशत
कुम्हार : 1.04 प्रतिशत
मुसहर : 3.08 प्रतिशत
बढ़ई : 1.45 प्रतिशत
कायस्थ : 0.60 प्रतिशत
यादव : 14.26 प्रतिशत
नाई : 1.59 प्रतिशत
बिंद : 0.98 प्रतिशत
बंजारा : 0.0064 प्रतिशत
बनिया : 2.31 प्रतिशत
बरई तमोली (चौरसिया) : 0.47 प्रतिशत
बागदी : 0.0023 प्रतिशत
बारी : 0.04 प्रतिशत
बिंझिया : 0.0003 प्रतिशत
बीरहोर : 0.0003 प्रतिशत
बेगा : 0.0008 प्रतिशत
बेदिया : 0.002 प्रतिशत
बेलदार : 0.36 प्रतिशत
बौरी : 0.0025 प्रतिशत
बंतार : 0.14 प्रतिशत
भठियारा (मुस्लिम) : 0.02 प्रतिशत
भांट, भट, ब्रह्मभट, राजभट (हिंदू) : 0.09 प्रतिशत
भाट (मुस्लिम) : 0.068 प्रतिशत
भार – 0.005 प्रतिशत
भास्कर : 0
भुइंया : 0.89 प्रतिशत
भुइयार : 0.0019 प्रतिशत
भोगता : 0.01 प्रतिशत
मंझवार : 0.0021 प्रतिशत
मडरिया (मुस्लिम) : 0.06 प्रतिशत
मदार : 0.0006 प्रतिशत
मदारी (मुस्लिम) : 0.0089 प्रतिशत
मल्लाह : 2.60 प्रतिशत
मलार : 0.0020 प्रतिशत
मलिक (मुस्लिम) : 0.085 प्रतिशत
मार्कंडेय : 0.067 प्रतिशत
मालपहरिया, कुमार भाग पहारिया : 0.036 प्रतिशत
माहली : 0.005 प्रतिशत
माली : 0.26 प्रतिशत
मांगर : 0.0009 प्रतिशत
नवेसुध : 0.0015 प्रतिशत
भूमिज : 0.0012 प्रतिशत
बहेलिया : 0.0061 प्रतिशत
रस्तोगी : 0.0065 प्रतिशत
केवानी : 0.0009 प्रतिशत
छीपी : 0.0007 प्रतिशत
जट (हिंदू) : 0.006 प्रतिशत
जट (मुस्लिम) : 0.03 प्रतिशत
जदुपतिया : 0.0001 प्रतिशत
जागा : 0.0034 प्रतिशत
जोगी : 0.013 प्रतिशत
टिकुलहार : 0.011 प्रतिशत
ठकुराई (मुस्लिम) : 0.112 प्रतिशत
डफाली (मुस्लिम) : 0.056 प्रतिशत
डोम, धनगढ़, बांसफोड़, धारीकर, धरकर, डोंगरा : 0.20 प्रतिशत
ढेकारु : 0.301 प्रतिशत
तमारिया : 0.0014 प्रतिशत
तीली : 0.013 प्रतिशत
तियर : 0.18 प्रतिशत
तुरहा : 0.35 प्रतिशत
तुरी : 0.05 प्रतिशत
तेली : 2.81 प्रतिशत
थारू : 0.14 प्रतिशत
अघोरी : 0.0069 प्रतिशत
अधरखी : 0.0236 प्रतिशत
अबदल : 0.0087 प्रतिशत
अमात : 0.2182 प्रतिशत
अवध बनिया : 0.0319 प्रतिशत
असुर, अगरिया : 0.0059 प्रतिशत
इदरिशी दर्जी (मुस्लिम) : 0.2522 प्रतिशत
इटफोरस, इटाफोरस, गदहेडी, इटपच इब्राहिम (मुस्लिम) : 0.0072 प्रतिशत
इसाई धर्मावलंबी (हरिजन) : 0.0074 प्रतिशत
इसाई धर्मावलंबी (अन्य पिछड़ी जाति) : 0.0088 प्रतिशत
उरांव, धांगड़ : 0.1532 प्रतिशत
कपरिया : 0.0033 प्रतिशत
नोनिया : 1.9112 प्रतिशत
पटवा : 0.0314 प्रतिशत
पठान : 0.7548 प्रतिशत
पमरिया (मुस्लिम) : 0.0496 प्रतिशत
परथा : 0.0003 प्रतिशत
परहया : 0.0009 प्रतिशत
पहिरा : 0.0002 प्रतिशत
प्रजापति : 1.4033 प्रतिशत
प्रधान : 0.0014 प्रतिशत
पान, सवासी, पानर : 1.7046 प्रतिशत
आंकड़े के हिसाब से कितने हिंदू और कितने मुसलमान हैं।
जाति जनगणना के अनुसार राज्य में लगभग 81 फ़ीसदी हिंदू हैं तथा लगभग 17 फ़ीसदी मुसलमान है।
बिहार में जाति जनगणना के आंकड़े घोषित होने के बाद राजनीति सियासत जोर।
बिहार के नीतीश सरकार ने जाति जनगणना के आंकड़े सोमवार को सार्वजनिक किया था। तब से विरोधी पार्टियों उन पर यह आरोप लगा रही है कि अगर पिछड़ा और अति पिछड़ा के हिसाब से अगर आरक्षण मिलता है तो सबसे ज्यादा फायदा मुसलमान को होगा। खासकर भारतीय जनता पार्टी के लोग यह कह रहे हैं कि नीतीश सरकार मुसलमान को फायदा देने के लिए यह आंकड़ा जारी किया है।
बिहार में जातिवार गणना की रिपोर्ट की सत्यता पर बढ़ा सवाल।
बिहार में जातिवार गणना की रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही उसकी सत्यता एवं विश्व गतियां पर सवाल उठाने जाने लगे हैं। विभिन्न जाति एवं दलों के प्रतिनिधि नेताओं को लग रहा कि उनकी जाति को काम करके बताया गया है या समूह में बांट दिया गया है। सवाल उठाने वाले नेताओं में दलित और पिछले अधिक हैं, जिनकी प्रतिक्रिया से आगे चलकर बावल में बढ़ सकता है। हालांकि उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने नसीहत दी है कि ऐसे लोगों को प्रधानमंत्री  से आग्रह करना चाहिए कि देश में जातिवार गणना कारा दे। इससे बिहार का पास भी सामने आ जाएगा। आप चौधरी से लेकर सांसद संजय जयसवाल थकने सरकार की मनसा पर सवाल उठाया है। जदयू के प्रदेश महासचिव मुख्य प्रगति मेहता ने मुख्यमंत्री नीतीश को पत्र लिखकर धार्मिक जाति को वास्तविक संख्या से कम दिखने पर आपत्ति जताई है है।
उत्तर प्रदेश के कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्ण ने तो संख्या के आधार पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कुर्सी छोड़ने का भी आग्रह कर रखा है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा है कि यादव की संख्या ज्यादा दिखाने के लिए सरकार ने 8 से 10 से जातियों को एक साथ मिला दिया है। इसको लेकर लोगों में विरोध पनप रहा है।
बिहार के बाद अब राजस्थान सरकार भी करावेगी जाति जनगणना।
बिहार के तर्ज पर अब राजस्थान सरकार भी करावेगी जाति गणना। गहलोत सरकार ने इसकी दी जानकारी उन्होंने कहा कि जाति जनगणना करना आवश्यक है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक भाषण में इसका जिक्र किया और कहा कि जाति जनगणना करना जरूरी है।
चिराग पासवान ने कहा जाती आधारित गणना में हुई हेरा फेरी।
रात पासवान ने कहा है कि बिहार में जाती आधारित से जनगणना में हेरा फेरी हुई है और किसी तरह से एजेंसी से यह गणना कराया । चिराग पासवान ने दैनिक जागरण से बात करते हुए ऐसा कहा। उन्होंने पारदर्शी आर्थिक सर्वेक्षण की मांग करते हुए दावा किया है कि कभी वह कभी जाती के राजनीति नहीं करते। उन्होंने कहा कि अगर झांसी आधारित गरीबी विष्णो और अनुसूचित जाति और जनजाति के कल्याण के लिए नीतियां बनाना चाहती है तो तटस्थ के साथ फिर से जनगणना हो। कुछ लोगों ने शिकायत की है कि जनगणना करने वालों ने उनसे संपर्क भी नहीं किया।

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